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संदेश

गांधीजी

व्यक्ति के निर्णय और अपेक्षाएं देश-काल पर निर्भर होती हैं। निर्बल भारत मे अहिंसा का शस्त्र सफल रहा था क्योंकि इसने इतिहास में अद्वितीय जनजागरण किया था। सुभाष बॉस और आजाद इसी जागरण की उपज थे। कश्मीर का जो भाग आज भारत के पास है वह भी गांधी व पटेल की जुगलबंदी का परिणाम है। नेहरू की अनुमति के बिना पटेल ने गांधी जी के कहने से शक्ति का प्रयोग किया था। गोडसे ने गांधी को नहीं मारा। गांधीजी को तो नेहरू जी पहले ही मार चुके थे। गोडसे ने तो एक हाड़ मांस के पुतले पर गोली दागकर गांधीजी को जिंदा कर दिया था। और अब गांधी जी को कोई नही मार सकता।क्योंकि गांधी का शस्त्र दक्षिण अफ्रीका, फिलिस्तीन आदि देशों में भी सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।1950 से 2000 तक के शांति व साहित्य के नोबल पुरस्कार पाने वाले लोगों के साक्षात्कार या जीवनी देखो। उनको इस मकाम तक लाने वाले प्रेरणास्रोत गांधी जी है। दुश्मन देश इग्लैंड के संसद परिसर में गांधी जी की प्रतिमा स्थापित होना उनकी वर्तमान में प्रासंगिकता को बताता है।सुभाष बोस द्वारा रेडियो टोकियो से आजाद हिंद फौज का भारत पर आक्रमण से पहले गांधीजी के नाम सन्देश सुनिए जिसमे उन
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सच्चा संगीत

सूर्योदय में दो-तीन घंटे बाकी हो। आपके आसपास सभी सो रहे हो। मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, किसी में भी कोई हलचल ना हो। ऐसे में आप उठिए। अपने पत्थरों, सीमेंट, लोहे के मकानों से बाहर निकलिए। किसी नदी के किनारे पर जाकर सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठिए। आंखें बंद कीजिए, कमर सीधी कीजिए, हाथों को घुटनों पर रखिए। आपको कुछ देखना नहीं है, आपको कुछ सोचना नहीं है, आपको कुछ करना नहीं है, बस अपने कान खुले रखिए और सुनिए- बहता हुआ जल आपको क्या सुनाता है? मधुर संगीत! ऐसा मधुर संगीत कि पंडित भीमसेन जोशी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और अनु मलिक जैसों का संगीत उस संगीत के सामने क्षुद्र नजर आने लगे। तब आप कैसा महसूस करेंगे? क्या आप रेडियो या टेलीविजन के शोर को सुनना पसंद करेंगे? क्या तब भी आपके मन में यह विचार आएंगे कि यदि मैं घर में होता, अपनी रजाई में होता, सामने टेलीविजन चला लेता और उसमें संगीत चलाता तो कितना अच्छा होता? नहीं! कभी नहीं। आप एक बार यह प्रयोग करके तो देखिए। आज से हजारों साल पहले एक ग्रीक दार्शनिक ने कहा था कि संगीत ही एकमात्र ऐसी विधा है जो मन को शांति प्रदान करती है और दर्शन से बड़ा

शब्द, अर्थ और पूर्वाग्रह

शब्द, अर्थ और परमतत्व मानव बुद्धि के अलग अलग सोपानों पर निर्भर है। शब्द मुख्यतः कानों का विषय है। कानों के ईयरड्रम पर जो ध्वनि तरंगे टंकार करती है वे ही शब्दों के रूप में ग्रहण किये जाते हैं। जब यें शब्द सनसेरी नर्व्स द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचाए जाते हैं तो मस्तिष्क उनका तुरन्त विश्लेषण करता है और उनके अर्थों को ग्रहण करके रिस्पॉन्स देता है। इसी प्रकार अर्थों को जिह्वा द्वारा शब्दों के रूप में बाहर करने का काम भी मस्तिष्क करता है मोटर नर्व्स के माध्यम से जो मस्तिष्क से आदेश लेकर इंद्रियों को सक्रिय करती हैं। इसीलिए तो महापुरुष कहते हैं कि आपने जो कहा वह आप पर निर्भर है और सुनने वाले ने जो सुना वह उस पर निर्भर है। वास्तव में आप अपने अर्थ को शब्दों में ढालकर सम्प्रेषित करते है और अन्य व्यक्ति उन शब्दों को अपने ही अर्थ में ग्रहण करता है। विभिन्न परिस्थितियों में समान शब्दों के विभिन्न अर्थ बन जाते हैं, क्योंकि सभी परिस्थितियां मनुष्य के मन में एक पूर्वाग्रह का अर्द्ध पारदर्शी आवरण बना देती हैं। इनमें से छनकर जब शब्द मन मे अर्थ के रूप में निरूपित होते हैं तो उसी परिस्थिति में रहने वालों क

आप अपने बच्चों को क्या देखना चाहते है: नचिकेता या भांड

तीन दिन से भूखा प्यासा यम के द्वार पर यम की प्रतीक्षा में बैठे बालक के संकल्प से प्रसन्न हो यम ने बालक नचिकेता को तीन वर माँगने को कहा। एकदम आपके सम्मुख ऐसी परिस्थिति आ जाये तो आप क्या मांगेंगे? धन तो एक वर में मिल जाएगा।उसके बाद धन से आप कोई भी भौतिक सुख,वस्तु या विषय खरीद सकते हो, बाकी दो वरों में आप क्या माँग करेंगे? यदि आप नचिकेता के स्थान पर होते तो क्या करते? दो पल पढ़ना बन्द करके सोचिए। जो आपके मन मे आया उसे नीचे के कमेंट बॉक्स में लिखिये और फिर आगे पढ़िए। हाँ! पूरा पढ़ने के बाद अपने कमेंट में कोई परिवर्तन मत करिए। . . . नचिकेता ने प्रथम वर यह माँगा कि जब वह यम के पास से वापस जाए तो उसके पिता उद्दालकजी उस पर गुस्सा न करे और उसकी बात पर विश्वास करके उसे गले से लगा ले। दूसरा वर यह माँगा कि उसे देवों की प्राप्ति कराने वाली अग्निविद्या का ज्ञान दिया जाए । और तीसरे वरदान में उस बालक ने तत्वज्ञान प्राप्त करने का वर माँगा। इतना पढ़ने के बाद क्या आप समझ पाए कि नचिकेता ने क्या माँग लिया? प्रथम वर: - जीवन की धारा ऐसी है कि इसमें सबको तैरना तो अकेले अकेले है किन्तु बहना एक साथ है। एकस

बालक में बुद्धि

एक कवि सम्मेलन में डॉ अरुण जैमिनी बता रहे थे कि अब बच्चे तो पैदा ही नही होते;बाप ही पैदा होते है। अपने हास्य अंदाज में वें नई नस्ल की बुद्धिमत्ता की बड़ाई कर रहे थे किन्तु मैं सोचने लगा कि क्या अभी इतने चतुर बच्चे पैदा होते हैं?क्या अतीत बुद्धिमान बालकों से खाली था। अतीत में झाँकते झाँकते में बहुत पीछे तक चला गया और उसमें ऐसे बहुत से ऐसे बच्चे दिखाई दिए जिन्होंने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।उनमें से एक बच्चे की बुद्धिमत्ता के कुछ पहलू आप के समक्ष रख रहा हूँ। बहुत पुराने समय मे राजा उद्दालक का एक पुत्र था नचिकेता।राजा ने एक महायज्ञ किया जिसमें अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दी। उस समय का सर्वश्रेष्ठ धन था गाय। राजा से सारी गाय दान कर दी । वे गाय भी जो बूढ़ी और जर्जर हो चुकी थी। दूध देने में असमर्थ थी। पाँच वर्षीय नचिकेता की बुद्धिमत्ता की प्रथम बानगी यहाँ देखिये। उसने इसका सीधे तौर पर विरोध न किया क्योंकि पिता से बात करने की मर्यादा भंग होने का खतरा था। उसने बुद्धिबल का प्रयोग किया और पिता से पूछा कि आप मुझे किसे दान देंगे? पिता समझ न पाए कि बालक कहना चाहता है जब आप दान देते समय केवल स

कैसे आये रामराज्य??

आजकल कोई भी राजनैतिक दल रामराज्य का सपना दिखाने लगे तो आम जन आँखे बंद करके उनके पीछे हो लेते है।जनता ये किसी से नही पूछती कि रामराज्य स्थापित करने की उन दलों की क्या कार्ययोजना है। दल भी ऐसा कोई पक्ष नही रखते जिससे उनके कथित रामराज्य के विषय में भान हो सके। रख भी कैसे सकते हैं; वास्तविकता तो यही है कि न तो किसी भी दल को रामराज्य की ही समझ है और न ही रामराज्य लाने की कोई नीति। श्री राम के जीवन मे झाँका जाए तो हम देखते है कि वशिष्ठ जी के आश्रम में शिक्षा पूर्ण होते ही श्री राम के पास रामराज्य का एक स्पष्ट दृष्टिकोण था। वह यह कि पहले आतताइयों और शत्रुओं से राज्य को सुरक्षित किया जाए। इसका प्रारम्भ उन्होंने महऋषि विश्वामित्र के आश्रम में राक्षशी चाची ताड़का और उनके अनुचरों को मौत के घाट उतार कर आरम्भ कर दिया था और उसके बाद वनवास में रहते हुए दक्षिण तक सभी शत्रुओं का संघार करके ही वापस लौटे। यदि उनके मन में रामराज्य का स्वप्न नही होता तो वें वनवास के समय उत्तर दिशा में किसी हिमालय की कन्दरा में ही गुजार देते! वैसे भी अवध को उत्तर दिशा से कोई खतरा नही था। राम को वन में ही तो निवास करना था फ

सोमरस पर भ्रम

कुछ लोग सोमरस को शराब के रूप में प्रचारित करने के दुष्चक्र चला रहे हैं। उनके लिए मैं कहना चाहता हूं कि सोम का अर्थ है शीतलता। सोमरस भारतीय इतिहास में पिया जाने वाला पेय पदार्थ था जो मन को शीतलता प्रदान करता था, तनाव से मुक्ति दिलाता था, मनुष्य को पापमुक्त रहने की प्रेरणापथ पर चलाता था । यज्ञ में इसका सेवन किया जाता था। निश्चित रूप से सोमरस आजकल के चरणामृत की भांति का पेय था जो मानव में पवित्रता के संकल्प के लिंगरूप में प्रयुक्त होता था। सिखों की परंपरा में अमृत चखने से मनुष्य संकल्प से सिख बन जाता है। सनातन परम्परा में सोमरस का जगह जगह पर वर्णन मिलता है। प्रत्येक वर्णन में शुद्धता का भाव है। यह भी इसी अमृत की भाँति शुभ संकल्प के संस्कारों पर पिया जाने वाला पेय था किन्तु दुर्भाग्य से इस पेय को बनाने की विधि कालान्तर में इसी प्रकार विलुप्त हो गयी जैसे कठ उपनिषद में वर्णित अग्निविद्या। इसी बात का फायदा उठाते हुए भारतीय संस्कृति को अपमानित करने के लिए धूर्त लोगो ने इसे नशीला पेय के रूप में प्रचारित किया। दर्शन पढ़ कर देखो। भारतीय दर्शनों में निकृष्टम माने जाने वाले चार्वाक दर्शन में भी